शायरी मेरा शौक है पेशा नहीं
आमदनी इसमे एक पैसा नहीं ।
अब न दौर है मीरो-गालिब का
और मैं भी हूँ उनके जैसा नहीं ।
कैसें बजाऊँ बीन उसके आगे
नागिन है वो,कोई भैंसा नहीं।
चल हट परे,मेरे पहलू से अब
इश्क़,लैला या मजनू जैसा नहीं ।
मायुस हो गए नतीजों से मियाँ
क्या ज्म्हुरियत पे भरोसा नहीं।