चल रहे हैं।

समय की
डाल पर बैठे
सन्नाटे के सुए।

कोलाहल अभिशप्त
हो गया है।
जीवन गहरी नींद
सो गया है।।

महल वैभवशाली है
झुग्गी को-
घृणा छुए।

दफ्तर टेढ़ी चाल
चल रहे हैं।
सपने मोम जैसे
गल रहे हैं।।

कैसी आजादी कि
हजारों-
अग्निदाह हुए।

गाँव सदा
एकाकी जीते हैं।
इच्छाओं के सब-
घट रीते हैं।।

महानगर के
खेल होंगे
भोग-विलास-जुए।
 


तारीख: 22.02.2024                                    अविनाश ब्यौहार









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