बहुत देर हो गई ,यूँ किसी के आने की बात थी ,
आँखों का था पैगाम,फिर मुस्कुराने की बात थी,
कोई ख्वाबों ख्यालों का ये नहीं है यंहा पर ज़िक्र,
मेरी और उनकी मुलाकात इसी ज़माने की बात थी,
पर गर नहीं भी आ रहे वो ,फिर भी कोई ग़म नहीं ,
मसले इस सितमगर ज़हाँ के भी तो उनपे कम नहीं ,
यूँ अक्सर हंस के टाल देता हूँ मैं सुन के उसकी बातें,
पर ऐसा भी नहीं हूँ अंजान कि जो मेरी आँख नम नहीं ,
पर फिर भी यकीं कि आखिर को वो आएंगे तो जरूर,
दूर ही से देख के परीशां मुझे मुस्कुराएंगे भी वो जरूर,
यूँ कुछ बिंदास, बेपरवाह दिखने की होगी पूरी कोशिश,
मिल के मगर चंद लम्हों ही में वो पिघल भी जायेंगे,जरूर !!