आओ न तुम

आओ न तुम तुम्हारी याद आ रही है।
तुम्हारे बिना ही ये घड़ी बीती जा रही है।
अब तो लगता है एक पल भी न जिऊँ।
देखो ना, मौत की छाया भी मुझे बुला रही है। 

काश ऐसा होता, हम सपनों की दुनिया में खोए रहते।
डूबे रहते तुम्हारी बाहों में, तुम्हारी गोद में सर रखकर सोए रहते।
तुम्हे हर पल निहारते, जैसे चाँद को चकोर निहारता है।
तुम्हारी कातिल मुस्कान से भरे सपनों में पलकें भिगोए रहते।
तुम्हारी साँसों की महक से धडकन रुक सी जा रही है।
आओ न तुम तुम्हारी याद आ रही है।

काश तुम्हारे साथ बिताए वो लम्हे मैं कैद कर पाता।
तुम्हारे न होने के एहसासों से मैं अकेले लड़ पाता।
तुम्हे प्यार कर पाता तुम्हारे पापा से भी ज्यादा।
संभल तो अब भी नहीं पा रहा हूँ काश मैं मर पाता।
ज़िन्दगी जीने की वजह खत्म होती जा रही है।
आओ न तुम तुम्हारी याद आ रही है।

काश ऐसा होता तुम मेरी ज़िन्दगी में न आती।
न मुझे खुशियाँ देती और न मुझे रुलाती।
न प्यार करती मुझे मेरी ज़िन्दगी से भी ज्यादा।
और न मेरे लिए हर दिन यूँ आँसू बहाती।
जैसे जल बिन मछली तड़पती है तुम्हारी चाह मुझे तड़पा रही है।
आओ न तुम तुम्हारी याद आ रही है।


तारीख: 06.06.2017                                    विवेक सोनी









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