प्रेम


प्रेम विरह है मिलन है प्रेम।
प्रेम हर्ष है रुदन है प्रेम।
रग रग में बहती धारा है।
इष्ट का अपने हवन है प्रेम।

प्रेम के वशीभूत हैं सब।
जो हैं प्रेम विहीन निभूत हैं सब।
प्रेम कहे मैं सब में हूँ।
हैं जो प्रेम मगन भवभूत हैं सब।
वो तो अवनि की हर रज में है।
बसंत की शीतल पवन है प्रेम।
प्रेम विरह है मिलन है प्रेम।

हर सरिता को सागर से प्रेम।
हर भ्रमरक को सुमन से है।
हर भक्त को माधव से प्रेम।
हर माली को चमन से है।
कृषक का मिट्टी से है ।
और धनिक का कंचन है प्रेम।
प्रेम विरह है मिलन है प्रेम।

ममता का आँचल है प्रेम।
पिता का मतलब भी है।
करुणा की प्रतिभा है प्रेम।
जीवन की हर तलब भी है।
प्रेम प्रीतम की मुस्कान है।
और स्त्री का जीवन है प्रेम।
प्रेम विरह है मिलन है प्रेम।

विषधर का मलयज है प्रेम।
ग्वालिन को पनघट से है।
सुमिरन का शाश्वत है प्रेम।
आँखिन को अँसुअन से है।
प्रेम कहीं बचपन में है।
चरितार्थ यौवन है प्रेम।
प्रेम विरह है मिलन है प्रेम।

प्रेम बिना यह सृष्टि नहीं।
प्रेम संग रमणीय धरा।
इंद्रधनुष सा दृश्य दिखे।
प्रेम है तो यौवन सी जरा।
प्रेम सौंदर्य का बखान है।
और भाव उपवन है प्रेम।
प्रेम विरह है मिलन है प्रेम।


तारीख: 05.06.2017                                    विवेक सोनी









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