देख धरा है लेट चुकी अब तम की चादर खुद पर डाले
पाकर वारिद ओट शशि है बैठा गुमशुम होश संभाले
और सितारों की शृंखलाएँ देख रही एकटक मुझको है
बैठ स्वप्न सजाता तेरी बैठ कल्पना के मैं सहारे
जीवन होता कितना सुंदर तुम होती यदि साथ हमारे
कई बार मैं गिरता उठता कई बार मैं जाता छला
कई बार भुला भटका पग फिर कैसे चल पाता भला
हरकर मेरे द्वेष गरल तुम जाने फिर कब शिव बन जाती
साथ लिए फिर से तेरा ही चल पड़ता मैं बिना विचारे
जीवन होता कितना निश्चल तुम होती यदि साथ हमारे
तारों की बगिया से मैने चुपके से कुछ फूल चुराए
देख मेरे आँगन को ज्योतित नियती माली आँख दिखाए
चाहा जब भी दीप जलना उसने कड़वी फूँक लगा दी
सूरज की शीतलता फिर भी मेरा मन कब भूल सका रे
जीवन होता कितना उज्ज्वल तुम होती यदि साथ हमारे