आना(कवि केदारनाथ सिंह के लिए)


कवि केदारनाथ सिंह के लिए

आना...
जैसे आता है बसंत 
पेड़ों पर 'खिज़ा' के बाद
आते हैं माह
आषाढ़, सावन, भादो

ऋतुएँ--मसलन
वर्षा, शरद, हेमंत, शिशिर

आना...
जैसे आता है 
आम पर बौर
नीम पर निबोली
गेंहू में दूध, दरिया में रवानी

आना...
किसी झिलमिल रंग की 
स्वप्निल छवि की तरह
मानिन्दे-बूए-गुल की तरह
गौहरे-शबनम की तरह
सुनहरी फ़सल की तरह

आना...
जैसे आती है भोर 
धीरे-धीरे आंचल पसारे

आता है माधुर्य 
नेरुदा-नाज़िम की किसी प्रेम कविता में

आना...
जैसे बुद्ध के चेहरें पर मुस्कान

आना...
हाँ कुछ इस तरह आना

जैसे आते हैं लौटकर 
थके--हारे पंक्षी 
नील-गगन से पृथ्वी पर
यह बताने कि 
आना जाने से 
कहीं ज़्यादा बेहतर है।


तारीख: 09.08.2019                                    आमिर विद्यार्थी









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