बदली धरती

खो गया वो जो था तुझमे सब
जो बनाया था तूने वही वीरान हो गया।
तश्नगी में चला आता था दुआओं से पेट
भरने जहाँ
आज वो तेरा गृह ही बेईमान हो गया।

न मूर्ति,न मोमबत्ती,न चादरऔर न ही
शराब थी,
पर फिर सुबह बिस्तर छोड़ने निकलती
तेरे लिए आवाज़ थी,
न होती थी चढ़ावे को बड़ी-सी कोई
थाली पर,
हर पहले कौर से पहले तेरे लिए आवाज़ थी।

बिक गया तू आज दान के पिटारों के
आकारों में,
खूब खाया है खूब तोंद बड़ी है,
खुदा तेरी सरकारों में।

जो है आज तू न तेरा वो ख्वाब था,
भ्रम में है इंसान तेरे इन चौरासी करोड़
प्रकारों में।

दोष तेरा, रीति तेरी, राज़ तेरा ,
बंधा हर मष्तिष्क में जो है हर मानव के
नहीं कुछ और है सिवा एक साज तेरा,
सच कहूँ अब कठपुतली बन गया है तू
हर गरीब है आज नाम का मोहताज तेरा।

कॉपीराइट तेरे दूकान तेरी
सुबह लगती और शाम लगती बेचने,
नाम को तेरे दलान तेरी
सच कहूँ अब तू आस्था से डराने लगा है मुझे
चन्द हाथों ने सिमेट डाली है पहचान तेरी।

न कोई है संत बचा है न कोई सवाली हैं
नज़र पड़ी भिखमंगों पर तो
आंसू भी घड़ियाली है।

नही डोलता था ईमान तब और बात थी
अब कीमत तेरी और भक्तों की
बस बिस्कुट और चाय की प्याली हैं।

तू देवलोक में जन्नत में या हेवन में ही
रहना अब,
बन चूका कोई भगवन है अभी यहाँ जगह
न खाली है।


तारीख: 14.06.2017                                    राम निरंजन रैदास




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