धधकता बनारस

खुद तुम खुद बन बन कर प्यादे
अपना राज़ गवां बैठे हो,
आज तुम उस पावन नगरी को
शतरंज की बिसात बना बैठे हो।

जेहन की गीता का गला घोंट तुम
खुद को बेईमान बना बैठे हो।
हर हर महादेव कह कह कर ,
तुम खुद को ..हाँ खुद को भगवान बना
बैठे हो।

आज जलाकर रोज़ी उन बेबसों की तुम,
हाँ तुम खुद को गुनहगार बना बैठे हो।
इक दूजे के हो रक्तपिपासु तुम खुद
धर्म का मज़ाक बना बैठे हो।
तीसरी आँख-सी खोलकर तुम खुद की
दोनों आँख गवां बैठे हो।

कूच कर दो और लड़ मरो तुम
आस्था का खिलवाड़ मचा बैठे हो।
शर्म गर है रुक जाओं वही तुम
मोक्षद्वार को नरक बना बैठे हो।

धैर्य गवां ज्ञानी वीर बने हो
अंधभक्तो?
जो सुदर्शन चक्र उठा बैठे हो।
बने उस शिव केसमर्पित भक्त हो तुम?
उसकी गंगा में जहर मिला बैठेहो।
हाँ उस प्यारे बनारस का तुम
आज गला दबा बैठे हो।

उन प्यारी प्यारी गलियों को तुम
देखो शमशान बना बैठे हो !


तारीख: 14.06.2017                                    राम निरंजन रैदास









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