डूबते सूर्य को निहारता मैं अक्सर सोचता हूँ
के जब यही सूर्य लौट के आना है
तो हर सुबह नई क्यूँ हो
और जो हर सुबह नई है तो
कहानी वही क्यूँ हो
क्यों ना सब काम छोड़कर
खुद से बात की जाए
जो खो गया है तुम्हारे भीतर उससे मुलाक़ात की जाए
कुछ धूल भरे अतीत के पन्ने खंगाले
जो टूट गए है रिश्ते उन्हें सम्भाले
कभी उपवन में दौड़ें कभी बारिश में नहाएँ
जो रास्ते में छूट गए उन चहरों को फिर बुलाएँ
तोड़ें कुछ रस्में दुनिया की
हर बार वही सही क्यूँ हो
जो हर सुबह नई है
तो कहानी वही क्यूँ हो