मुर्दो के शहर में, एक जान ढूढ़ता हूँ
इन खाली पड़े रास्तो में, आजकल इंसान ढूढ़ता हूँ
हर मज़हब के लोगो के भगवान ढूढ़ता हूँ
मंदिर की वो घंटिया और मस्जिद की अज़ान ढूढ़ता हूँ
मै सच कहुँ तो इंसानो में, एक सच्चा इंसान ढूढ़ता हूँ
इन खाली से सन्नाटो में, खुद से ही बाते करता हूँ
इस खामोशी में जीते-जीते,आजकल रोज मरता हूँ
फिर भी इस अँधेरे में, एक प्रकाश ढूढ़ता हूँ
इंसानो में इंसान बनने की एक आस ढूढ़ता हूँ