मुझपर तोहमत लगाने वाला
कब का सो चुका था!
मैं उठा ,चुपचाप तोहमत
उसी पर झाड़ी
और चल दिया !
तोहमत उसे दिखेगी
तो वापिस उठा लेगा वो,
दे देगा किसी और को ,
जिसके ऊपर कोई तोहमत
न लगाई होगी उसने कभी !
मेरा क्या है
मेरे पास तो पहले से ही
कई तोहमते हैं ,
आखिर मैं भी अब
कितनी तोहमतें संभालूं
कितनी झाड़ूं,
कितनी ओढ़ूं
कितनी बिछा लूं ?
अब की सोचा है
तोहमतों को गिन कर तो देखूं,
ज्यादा हुई तो सेल लगा लूं
और कम हुई तो कुछ अपनों को बुलाकर
नई तोहमतों से घरबार सजा लूं !
©® सुजाता
2. घड़ी की सूईयों से घायल पैरों पर
बदहवास दौड़ती-भागती औरतें
घर को तरतीब से लगाने की जद्दोजहद करती
काम पर जाती रही!
दुधमुंहों का दूध बनाते,
आफिस वालों का टिफिन सजाते,
तरकारियों की छौंक लगाते,
रोटियों से कैसरोल भराते,
बच्चों की ब्रैड पर जैम लगाते,
बर्तनों के बिखरे ढेर निपटाते,
गट्ठर कपड़ों के धूप दिखाते,
काम पर जाती रहीं !
बालों को गाँठ कर क्लिप अटकाते,
पिन कर दुपट्टा काँधे लटकाते,
साड़ी की सिकुड़ी क्रीज़ दबाते,
बिंदिया को माथे बीच सरकाते,
पर्स से बोरोलीन लगाते,
छुट्टे पैसे रोज़ बचाते,
काम पर जाती रही!
कभी आधा -कभी पूरा
कभी खाया कभी छोड़ा
कभी पक्का कभी कच्चा
टिफिन भूल कभी गच्चा खाकर
काम पर जाती रही!
नमी को काजल डाल छिपाते,
पपड़ाए अधरों पर लाली पुताते,
कलाई के दाग पर चूड़ी चढ़ाते,
मैचिंग स्टाल से बदन ढंकाते,
काम पर जाती रही !
रात की आधी नींद ऊंघाते
दुखते सिर पर बाम लगाके
पैरासिटामोल से ताप घटाते
बीपी की सूई पर नजर टिकाते
आए गए का मान मनाते
काम पर जाती रही!
बच्चों को साथ लेकर
पीछे कभी रोता छोड़कर
हाथ में कोई खिलौना देकर
कभी रोटी का कौर देकर,
पड़ोसी के हाथ बिछौना देकर,
काम पर जाती रही!
कभी पानी भरने
कभी गुड़ाई करने
कभी फसल की
बुआई करने
कभी आफिस में
कभी दुकान
कभी पैदल
कभी साईकल
कभी स्कूटी
कभी बाईकर
कभी बस में
कभी ट्रेन में
कभी रिक्शा
कभी वैन से
काम पर जाती रही
कभी छाता ले
कभी पर्स भूलकर
कभी सोते कभी रोते
कभी होते कभी खोते
बच्चों को छोड़कर
काम पर जाती रही!
क्योंकि उन्हें मालूम है कि
उनका काम पर जाना
निश्चयवाचक क्रियाविशेषण है,
इसीलिए वे अपनी हर टूट पर
हौसले का फेवीकोल लगाकर
काम पर जाती रही !
-सुजाता
3. घर में खोई औरतें
चाय की खुशबू के महकते
इलायची, अदरक ,दालचीनी के
स्ट्रांग फ्लेवर में मिला करती हैं!
घर में खोई औरतें
कमीज़ों के टूटकर
ताजा टंके बटनों
और उधड़े रिश्तों की तुरपाई में
मिला करती हैं!
घर में खोई औरतें
संदूकों में सहेज कर रखे
शादी के वक्त हाथ से पति के नाम का
पहला अक्षर कढ़े सालों पुराने
उन नए नकोर रूमालों के
लाल रेशमी धागों में मिला करती हैं
जो जीवनसाथी ने कभी छुए ही नहीं!
घर में खोई औरतें
मुरब्बों की मिठास
अचारों की खटास
और ताज़ा कुटे मसालों की सुवास में
मिला करती हैं!
घर में खोने वाली सभी औरतें
चाबियों के गुच्छों पर लटके
उन घुंघरुओ में मिला करती हैं
जो अल्मारियों के ताले खोल-बंद करते
अक्सर कलाई की चूड़ियों से उलझ
संगीत के अद्भुत सुर रच जाया करते हैं!
घर में खोई औरतें
खाट से लग कर भी खोई रहती हैं
और तब वे अलमारियों में बिछे अखबार के नीचे पड़े
किसी मुड़े -तुड़े सौ पचास के नोट में
तकिए के नीचे रखे छोटे से पर्स में
जतन से संभाली अपनी सगाई की अँगूठी में
या किसी घुटनियों चलते नाती पोते के गले में पड़े
काले धागे में पिरोए छिक्कल पैसे में बंधी गाँठ में
या फिर पुराने नींबू के अचार के सूखकर
चूरन बनी छोटी डलियों में भी मिला करती हैं!
घर में खोई औरतों को
उनके देह त्याग देने के पश्चात
यदि किसी दिन तुम उन्हें याद कर पूरे घर में
उन्हें ढूंढो और वे न मिलें तो
तो घर की चौखट को गौर से देखना,
बहुत मुमकिन है वो वहीं चींटी बनी
चौखट में पड़ी दरारों को
जतन से भरती मिल जाएंगीं!
©® (सुजाता)
4). नदी का विसर्जन
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नदी जब मरती है
तो उसके साथ मरते हैं
जल शैवाल और मछलियाँ !
साथ ही मरते हैं किनारे,
जो साक्षी रहे थे अनगिनत मुलाकातों
विदाओं और स्वागतों के !
पतवार की मौत भी
नदी के साथ ही हो जाती है!
बचता है केवल माझी जो ताउम्र
मरी हुई नदी की अस्थियाँ
संग्रह करने में जीवन व्यतीत करता है
और अपनी अाखिरी साँस तक
उन्हें विसर्जित करने
किसी और जीवित नदी के पास जाने से
हृदय में होेने वाले संताप
और पीड़ा सहने का साहस नहीं जुटा पाता !
प्रेम में कितने प्रेमी भला मांझी हो पाते हैं !
©®सुजाता
5. विवाह में गठजोड़ के
बँधन से बँधे हम
प्रेम में 'जोड़ा' हो पाए,
यह कहना जितना आसान है,
वास्तव में जोड़ा होना
उतना आसान नहीं है,
जोड़ा होने की पीड़ा
जोड़ा होने की प्रसन्नता
जोड़ा होने की विवशता
जोड़ा होने का डर
जोड़ा होने की मर्जी
सब अलग अलग बातें हैं !
वास्तव में 'जोड़ा' होने की
आंतरिक अनुभूति होना बहुत कम
जोड़ों को नसीब होता है !
जिन्हें नसीब हो गया
वो जोड़े में ही जीते हैं
और ईश्वर के आशीर्वाद से
देर सबेर जोड़ा होकर ही जाते हैं.
अपने आसपास ढूंढोगे तो
मिलेंगें ऐसे कम जोड़े जो
कहने भर को जोड़ा नहीं,
वास्तव में जोड़ा हो पाए!
जो जोड़ा हो पाए केवल
वे ही जान सकते हैं कि
प्रेम में जोड़ा' होकर रहना
बहुत कष्टदायी है !
जो इसमें होने की
पीड़ा से गुजर कर इसमें रह जाते हैं
केवल वही दोनों सातों जनम
'जोड़ा' होने का सौभाग्य पाते हैं !