वह अहसास तुम्हीं हो

पलकें भारी होने के पल से;
गहरी नींद में खो जाने तक,
अतृप्त रही वो प्यास तुम्हीं हो!
प्रिये! वह अहसास तुम्हीं हो।

ठन्डे नैन नीर  प्रकट होकर जो
बिस्तर पाते कपोल मार्ग से
विरहाग्नि को शांत जो करते
उस जल का आभास तुम्हीं हो!

सुतल बनाया ह्रदय को देखो,
भीतर का सन्त्रास तुम्हीं हो,
ऊपर उठा पर फिर है गिर बैठा,
दूरस्थ प्रतीत आकाश तुम्हीं हो।

सूर्योदय  जनवरी-सा हुआ है मुझे
सूर्यास्त दिसंबर लगता है,
दिन दूभर हो बरस बन गया,
हाँ ह्रदय का वनवास तुम्हीं हो!


मिली हो जाकर तुम उस नभ में,
भयंकर आग यहाँ जला बैठी हो।
मरुभूमि हुआ ह्रदय फिर देखो,
मृगतृष्णा सी आस तुम्हीं हो।

अधजल हुए हैं नैन प्रिये!
उन पलों में हर पल जीते है 
उन पलो को लेकर रहे बिलखते
जो झंझावती घाव कुरेदा करते हैं।

कहा न जाता अब हाल प्रिये 
हुआ हूँ अब वीरान प्रिये!
बस चन्द झोंके ही यादों के है
उन्ही से हूँ बस बागान प्रिये!


तारीख: 10.06.2017                                    राम निरंजन रैदास









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