कहीं तुम तो नहीं हो

यहां इक सन्नाटा सा पसरा था इन गलियों में पर 

आज एक आवाज़ सी गूंजी है, कहीं तुम तो नही हो

 

पल भर में मुंह फेरने का हुनर खूब आता है तुमको

आज एक और राब्ता टूटा है, कहीं तुम तो नहीं हो

 

बरसों लग जाते है वो दक़ीक़ दरारें भरने में यारब 

अब कोई और गहरी कर रहा है, ये तुम तो नहीं हो

 

सब अपने समेट रखे है मैने आज अंजली में अपनी 

बस ये जो छलक सा गया है, कहीं तुम तो नहीं हो

 

बातिल काली बदरियों सी थी तू, जो न बरसे कभी

हाय ये जो अब बरस रहा है, कहीं तुम तो नही हो

 

एक पलड़ा है गम का, एक पलड़े में रखते है जाम

ये जो अब तक पी रहा है, कहीं तुम तो नही हो


तारीख: 02.07.2025                                    अभय सिंह राठौर




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