मकसद ज़िंदगी का

आदतन यूँ इधर से उधर दौड़ा रही है,
ज़िंदगी, ज़िंदगी से, लम्हे चुरा रही है,
 
इक पल भी रुकने नहीं देती कंही भी,
मेरी तकदीर ये, मुझको दिखा रही है,
 
थोड़ा तू होंसला,रख के चल यंहा पर, 
इशारों में बस, मुझे,ये समझा रही है
,
साँस लेने की भी, फुर्सत है किस को ,
हाल ज़माने का, फिर से, बता रही है,
   
बहुत थे ख़्वाब पाले,मन ही मन तूने,
अब तो ये अंजाम उनके दिखा रही है,
 
सुख दुःख, सब यूँ आने है, बारी बारी,
तेरी,सब हसरतें ये यूँ ही मिटा रही है,  
 
आदतन यूँ इधर से उधर दौड़ा रही है,
ज़िंदगी, ज़िंदगी से, लम्हे चुरा रही है!!


तारीख: 17.06.2017                                    राज भंडारी




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