सब्र बेइंतिहा

महसूस कर ही लिया, मैंने आज आखिर,जो गहरा इक दर्द अंदर छुपा के बैठे हो,
काबू करके, अपने वो ज़ज़्बात, क्या खूब, यूँ तुम राज अब जो, मुस्कुरा के बैठे हो 

हो उस दर्द से परेशान, अपने, बस उसको, कभी ज़ाहिर, तुम यूँ  होने नहीं देते ,
यही तारीफ है क़े सुनते हो सबकी, मगर अपनी दिल में, अपने, दबा के बैठे हो,   

तुम्हारा जब्त देख क़े, और सब्र देख क़े, बहुत हैरान है यह ये सारे जहान वाले,
जिनसे खता खाई तुमने, उनके साथ ही, फिर महफ़िल में दिल लगा क़े, बैठे हो ,

इस ज़िंदगी में, तुमसे बेहतर दिखा ना कोई भी फनकार, अब तक मुझे, क़े राज,
गले लगा चुके फिर उन कातिलों को, जिन्हे पहले ही से, खूब आज़मा क़े बैठ हो,

मैं आदम कंहू, फ़रिश्ता कंहू, या की दीवाना ही कह दूँ अब क़े तुम्हे सरे महफ़िल,
जिस ने किया दर बदर तुम्हे उसी रकीब क़े लिए अब भी  शमा जला क़े बैठे हो,   
  
महसूस कर ही लिया, मैंने आज आखिर,जो गहरा इक दर्द अंदर छुपा के बैठे हो,
काबू करके, अपने वो ज़ज़्बात क्या खूब, यूँ तुम राज अब जो मुस्कुरा के बैठे हो !!


तारीख: 17.06.2017                                    राज भंडारी






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