अंधेरो से अंधरो को मिटाने चले हो,
ये कैसे तरकीब तुम आजमाने चले हो,
सिर्फ उजालो ही से दूर होंगे ये सारे अँधेरे,
शुक्र है कि तुम अब इक शमा जलाने चले हो,
सुना है इस दुनिआ से अब तुम करते हो नफरत,
क्यों इस तरहें से तुम खुद को यूँ मिटाने चले हो,
प्यार और सिर्फ प्यार ही से बस खत्म होगी ये नफरत,
प्यार बांटो थोड़ा क्यों तुम इस नफरत को बढ़ाने चले हो,
किसी पे भी यूँ कुछ भी यकीन क्यों तुम्हारा अब नहीं है,
नाराजगी ये अपनी तुम किस बेवफा को अब दिखाने चले हो,
यह माना कि तेरे इस दिल ने इक चोट बहुत खाई है गहरी ,
तो क्यों अब सारी दुनिआ ही को तुम बस बेवफा बताने चले हो,
चलो उठ के बैठो कि तुम्हे फिर से इक नई जो शुरुआत है करनी,
बस अब खुश रहो जो इक जहाँ नया, फिर से तुम बसाने चले हो,
जिन अंधेरों ने तुम्हे ज़िंदगी में कभी यूँ कितना रुस्वा किया था,
अब नए सिरे से वंही पहुँच के बस इक शमा तुम जलाने चले हो!!