ह्रदय नहीं है मेरे पास
एक नदी है बस।
गंध से
रंग से
आकार से परे
नदी।
पता नहीं कब,
एक बार,
प्रेम की उँगलियों से,
स्पर्श किया था तुमने
इस अद्रश्य नदी को।
बढ रहा है तबसे
उफान इसका
धीरे-धीरे।
डूब रहा हूँ मैं
धीरे-धीरे
छुप रहा है जग
धीरे-धीरे।