चांदनी रात में बेबस ये सितारे

चांदनी रात में बेबस ये सितारे कुछ-कुछ कहते हैं,
इस उजाले में कुछ गुम सा है ये नज़ारे कुछ-कुछ कहते है,
पास रहकर चकाचौंध हो तुम इस हकीक़त से यूँ,
होठों के सहसा क्षणिक थमने के इशारे कुछ-कुछ कहते है।

फना होना आसां लगता है तुम पर न जाने क्यों,
झुकती-उठती पलकों के अंदाज़ कुछ-कुछ कहते है;
शायद मेरा मुझमें ही नही बचा रहा अब कुछ,
जहाँ की नज़रों में बदले मेरे मिजाज़ कुछ-कुछ कहते हैं।

बिजली की कड़क से यूँ ही न बरसते बादल,
आसुओं की छोटी-बड़ी बूदों का आकार कुछ-कुछ कहते है;
यु ही न उठती ये कलम अर्द्ध-रात्रि में
दिल पे चल रहे चाक़ू-तलवार कुछ-कुछ कहते है।


तारीख: 05.06.2017                                    राम निरंजन रैदास




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