छुप छुप के धरा निहारे

छुप छुप के धरा निहारे चाँद का मन अभी भरा नहीं 
बादल ने छूरा घोंपा है तभी तो मौसम हरा नहीं...

विकल समन्दर रोज पुकारे नदिया रानी कहाँ गयी ,
बांध ने आके रस्ते रोके उनका प्यार मरा वहीं...

हर कोयल फिर ज़ोर से गाए गीत सुनाना सज़ा नहीं 
पर चील कौवे की नियति साफ हो ऐसा प्यारा जहाँ नहीं...

नफ़रत की बहती नदिया में प्रेम नाव का पता नहीं
एक साथ हो सत्य भरोसा ऐसा तट अब बचा नहीं...

पतझड़ वाला पेड़ भी अच्छा और बसन्ती पेड़ सही
सत्य बात पर हो अड़िग पेड़ सा किसी बात पर लज़ा नहीं...

सावन की रमणीयता पर चातक गाए राग वही
धूप निकम्मी आ खड़ी विरही की तब जान गयी...

पेड़ प्यार के सबने बोये काँटों की पर चाह नहीं
हरदम ही मीठे फल होंगें ऐसी मिट्टी यहाँ नहीं...


तारीख: 10.06.2017                                    शशांक तिवारी




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