इसीलिए न मिलकर मैंने

तुम्हें थामने को मन मेरा , अम्बर सा हरदम बिखरा !
लेकिन सर का लाल रंग ये , मुझको हरदम ही अखरा !!
अपनी काली नजरों से मैं , खुशियाँ सब हर लेता हूँ !
आज ज़रा ये जान भी लो कि , क्यों मिलने से डरता हूँ !!

जिन आँखों में बरसों मैंने , खुद का अंश टटोला है !
जिन आँखों में मैंने खुद को , थोड़ा थोड़ा घोला है !!
उन आँखों में किसी और का , चित्र नही सह पाउँगा !
इसीलिये मिलने को प्रियसी , हाँ नही कह पाउँगा !!

जो बाली और नथनी मेरा , सबसे सुंदर ख़्वाब रही !
जो कंगन अरु मेंहदी मेरे , प्रीत का स्वच्छ हिसाब रही !!
उन हाथों में हाथ धरूँ ना , जिसने मुझे मिटाया है !
इसीलिये प्रियसी मैंने यूँ , खुद को व्यस्त बताया है !!

तुम कहती मैंने वादों को , जला जला कर राख किया !
तुम कहती एहसासों को , मैंने हरदम ही ढ़ाक़ दिया !!
हाँ क्योंकि मेरे साथ तुम्हारा , भाग्य सदा ही रोया है !
इसीलिये न मिलकर मैंने , तेरा भाग्य संजोया है !!


तारीख: 03.07.2017                                    शशांक तिवारी









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