दोहे रमेश के, मकर संक्राँति पर

मकर राशि पर सूर्य जब, आ जाते है आज !
उत्तरायणी पर्व का, हो जाता आगाज !!

कनकअौं की आपने,ऐसी भरी उड़ान !
आसमान मे हो गये , पंछी लहू लुहान !!

फिरकी फिरने लग गई, उड़ने लगी पतंग !
कनकअौं की छिड़ गई, आसमान मे जंग !!

अनुशासित हो कर लडें,लडनी हो जो  जंग !
कहे डोर से आज फिर ,   उडती हुई पतंग !!

कहने को तो देश में,अलग अलग है प्रान्त !
कहीं कहें पोंगल इसे , कहे कहीं सक्रांत !!

उनका मेरा साथ  है, जैसे डोर पतंग !
जीवन के आकाश मे, उडें हमेशा संग !!

मना लिया कल ही कहीं,कही मनायें आज !
त्योंहारो के हो गये, अब तो अलग मिजाज !!

त्योहारों में धुस गई, यहांँ कदाचित भ्राँति !
दो दिन तक चलती रहे, देखो अब संक्राँति   !


तारीख: 23.06.2017                                    रमेश शर्मा









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