मन को सुख से भरता देश

Hindi Kavita sahitya manjari

कहीं सघन वन- उपवन-बाग,
कहीं नदी, सर, ताल, तड़ाग, 
हिमगिरि कहीं, कहीं पर रेत,
कहीं मनोहर धानी खेत ,
कितना मनभावन परिवेश ।
मन को सुख से भरता देश ।। 

कहीं मधुर कलरव का शोर,
कहीं नाचते सुन्दर मोर,
तोता-मैना कहीं बटेर,
कहीं दहाड़ लगाते शेर, 
सुन्दर खग,मृग बड़े विशेष ।
मन को सुख से भरता देश ।। 

प्रकृति बदलती रहती रूप,
बादल कहीं, कहीं पर धूप, 
सर्दी, गर्मी, रिमझिम मेह, 
सब सहती धरती की देह,
मिलता दृढ़ता का संदेश ।
मन को सुख से भरता देश ।।

सबके अपने अपने ठाठ,
सबके अपने पूजा- पाठ,
फिर भी रहते सब मिल साथ,
बढ़ते सदा मदद को हाथ,
भले अलग हों सबके भेष ।
मन को सुख से भरता देश ।।


तारीख: 22.01.2024                                    त्रिलोक सिंह ठकुरेला




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