मैंने चिर प्रतीक्षा को
सतत संघर्ष को
असुरक्षा को
भयानक पागलपन को
अपनी मौज बनाया है
बनाया है अपना परमानंद
मैंने काल के पहिए से रिसते रक्त से
होली खेली है
दीप जलाए हैं
नशा किया है
मैंने दु:ख के थपेड़ों को माना है
अपनी महबूबा के होंठों का स्पर्श
थोड़ा देखो तो सही
कैसे कर ली है खूबसूरत मैंने अपनी दुनिया!!