आ माला !!
परिष्कृत प्रेम में निज स्वार्थ को त्यागें ,
यातनाएँ झेलकर गृह शांति ही मांगें ,
तू लक्ष्मी की सफ़ीर है लक्ष्मी तू नही प्रियसी ,
युक्ति कुछ कर दस्यु का कुछ कर्म ही जागे !!
हाँ माला !!
दुर्बल बनी तू आज तो वेदना पाए ,
दरिद्र रावण को क्यों तू पालती आए ,
चन्द सिक्कों की भूख़ में पापी बने स्वामी
और दया की ओट में तू आँसू भी पी जाए ....
हाँ माला !!!
निरर्थक अर्थहीन आधार क्यों लगता ,
क्यों काली का रूप ना हो अब क्यों अब तक तू माँ सीता,
चलो अब जाग कर दुर्गा बनो प्यारी ,
ममता की चादर उतारो आज लगा दो तुम चिंगारी ....
परिष्कृत -शुद्ध , सफ़ीर - दासी , दस्यु -डाँकू , युक्ति - क्रिया / चाल