बेज़ुबान

 बेज़ुबान थी वो 
बेबस सी  थी 
भूख की  मारी  थी 
इंसान के "रूप "से 
न वाकिफ थी 
फसती कैसे  न 
इंसानों के इस "रूप "से 
न  वाकिफ थी 
भूख की उसकी  तलब ने 
इंसान पर अकीदा करा दिया 
विश्वास ने मौत की
 नींद सुला दिया 
कुछ इस तरह 
मानव ने अपना "रूप "दिखा दिया 
भूख के प्रलोभन ने 
एक माँ को भी झांसे  में ले  लिया 
मानव ने विश्वास पर
 प्रश्न चिन्ह लगा  दिया 
नन्ही -सी जान को भी 
जाल में फसा लिया 
एक माँ को कुछ  इस  तरह 
बेबस बना  दिया 
कुछ इस  तरह मानव ने 
मानवता का दीपक बुझा  दिया 
मानव ने अपना केहर ढा दिया ll


तारीख: 29.02.2024                                    अरुणा शुक्ला









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