जब भी घर से निकलना तुम

जब भी घर से निकलना तुम
जरा बाएँ बाएँ चलना तुम

देखो तुम सुन्दर हो तुम नाजुक हो
हम नादानों के दिल पे चाबुक हो
यूँ ना गेसू खोले फिरा करो
थोड़ा करम तो हम पे करा करो
इक रहम मुझ पर करना तुम
जरा धीरे धीरे चलना तुम
जब भी घर से निकलना तुम
जरा बाएँ बाएँ चलना तुम

क्यूंकि दायें दिल के फेरे हैं
सारे बड़े चोर लुटेरे हैं
ये सुन्दर ख़्वाब दिखाएंगे
तुम्हें झूठी आस दिलाएंगे
इक रहम मुझ पर करना तुम
जरा नजरें नीची रखना तुम
जब भी घर से निकलना तुम
जरा बाएँ बाएँ चलना तुम

देखो जरा अपने दिल को समझाना
दर्द-ए-दिल ना किसी को बतलाना
कुछ बातें उसमें से चुन लेंगे
तो जाल वो सारे बुन लेंगे
इक रहम मुझ पर करना तुम
जरा चेहरों से संभलना तुम
जब भी घर से निकलना तुम
जरा बाएँ बाएँ चलना तुम
 


तारीख: 20.06.2017                                    आयुष राय




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