विदाई

इक बात कहें, हम पागल हैं
हाँ में हाँ भरते जाते हैं
 
 
हैं नर्म खुशी के रोम तेरे
हम साँसों से सहलाते हैं


चिर यौवन का संधान किये
तू पास हमारे आती है
तब जल-जल कर जगती में हम
अपना सर्वस्व लुटाते हैं
 
 
इक बात कहें....
 
 
तेरी आहों की खन-खन से
चैनों का नित संहार हुआ
तेरे स्पर्श की बरखा से
मदहोश मेरा संसार हुआ
रूक जा-रूक जा ओ महातेज
हम इतना ही सह पाते हैं
 
 
इक बात कहें....
 
 
नंगे दौडे या चिल्लाएँ,
हो गए हैं पागल क्या करें
कुछ पल को हम तुम हैं सुखन
युग का न मिलन है क्या करें
सोचा था तारे चूमेंगे
जुगनू को हाल सुनाते हैं
 
 
इक बात कहें....
 
 
सतरंगी यादों का चोला
पहने तू सुंदर दिखती है
जब आई थी बेपरहन थी
पर्दे में दूर सरकती है
तुझको पाने की त्रष्णा से
हम खुद को रोज सताते हैं
  
इक बात कहें, हम पागल हैं
हाँ में हाँ भरते जाते हैं   


तारीख: 10.06.2017                                    पुष्पेंद्र पाठक









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