मुंतज़िर

पाबंदी है या तसल्लुत है तुम्हे ख़ुद पर

सोज़ा आफ़ताब तुम तो अंगारा कर दो

 

क्यूं दिल ही में रखते हो अरमान अपने

इनका कोई और भी तो ठिकाना कर दो

 

दगाबाज़ है, न सहज पाएगा ये रंग इतने 

कुछ आंखों कुछ होठों से रवाना कर दो

 

आह-ए-फ़वाद सच हो जाती है अक्सर

हमे न सही कायनात को इशारा कर दो

 

सब्र की बस इंतहा होगी वो ए ज़ालिम

कि कोई न हो और तुम किनारा कर लो


तारीख: 03.07.2025                                    अभय सिंह राठौर




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