महफिलें बेनूर सी

महफिलें बेनूर सी मानो।
औ मंजिलें दूर सी मानो।।

उनके मन में जो बातें हैं,
लगता है फितूर सी मानो।

है सब कुछ उजड़ा उजड़ा,
बेकली  नासूर  सी  मानो।

फूलों से भी जख्म मिले हैं,
तो  बेरुखी  क्रूर सी मानो।

है नदिया खुद में सिमट गई,
बारिशें  भरपूर  सी  मानो।

नम्र विनीत यदि सच होता है,
फिर  बदी  मगरूर सी मानो।

लुका छिपी है रिश्वत तो फिर,
दयानत  मशहूर  सी  मानो।

सत्ताधारी   शहंशाह   हैं,
बकरियाँ जमहूर सी मानो।

खिदमत पसंद आला अफसर,
है  लीव  मंजूर  सी  मानो।


तारीख: 05.03.2024                                    अविनाश ब्यौहार




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