हाँ
सही कहा
आपने
अदिबों की
नज़र
में 'बेअदब' हूँ मैं ।
क्योंकि
न मैं कहता गज़ल
हूँ 'बहर' में ,न लिखता हूँ
कोई गीत,नवगीत,कविता,दोहा
छ्न्द के दायरे में रहकर ।
न किसी विधा की है
कोई जानकारी,
न मैं हूँ किसी विधा में पारंगत ।
न कोई साहित्य की है तमीज़ ।
मैं तो सीधे-साधे,सरल शब्दोँ में
सीधे-साधे सरल लोगों की बातें
करता हूँ अपनी रचनाओं में ।
जो देखता,सुनता
और महसूस
करता हूँ
मैं ।
और मेरी
भावनाएँ
साहित्य
के
नियमों से परे हैं ।