उम्र भर रिश्ता जिससे निभाया है


उम्र भर रिश्ता जिससे निभाया है
वक़्त पर किया उसने पराया है ।

मिला जो भी भूख का मारा मुझको
पेट भर खाना उसको खिलाया है ।

कहीं है हिन्दू तो कहीं है मुसलमां यारों
मेरी बस्ती को यूँ किसने लड़ाया है ।

गर नही है प्यार ए हमनशीं मुझसे 
क्यू नाम फिर मेंहदी में सजाया है ।

वक़्त की रेस में बस भागते ही रहना 
मुड़कर देखने वाला सदा लड़खड़ाया है ।

गिरा हूँ जब भी चलने की चाह में 
माँ ने झट से मुझको उठाया है ।

करना इज़्ज़त उसकी शहादत की
खूं जिसने सरहद पर बहाया है ।

इतना भी न लो नाम तुम मेरा रिशु
हिचकियों ने रात भर मुझको जगाया है ।


तारीख: 16.06.2017                                    ऋषभ शर्मा रिशु




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