उम्र भर रिश्ता जिससे निभाया है
वक़्त पर किया उसने पराया है ।
मिला जो भी भूख का मारा मुझको
पेट भर खाना उसको खिलाया है ।
कहीं है हिन्दू तो कहीं है मुसलमां यारों
मेरी बस्ती को यूँ किसने लड़ाया है ।
गर नही है प्यार ए हमनशीं मुझसे
क्यू नाम फिर मेंहदी में सजाया है ।
वक़्त की रेस में बस भागते ही रहना
मुड़कर देखने वाला सदा लड़खड़ाया है ।
गिरा हूँ जब भी चलने की चाह में
माँ ने झट से मुझको उठाया है ।
करना इज़्ज़त उसकी शहादत की
खूं जिसने सरहद पर बहाया है ।
इतना भी न लो नाम तुम मेरा रिशु
हिचकियों ने रात भर मुझको जगाया है ।